किसकी तरफ है चीन की 12,000 मिसाइलों का मुंह? ड्रैगन का WAR कैलेंडर में 2020 में चीन की पहली बड़ी जंग का दावा

रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च और अप्रैल के महीने में चीन के लड़ाकू विमान ताइवान को अपनी ताकत दिखाने का मौका ढूंढते रहे.

किसकी तरफ है चीन की 12,000 मिसाइलों का मुंह? ड्रैगन का WAR कैलेंडर में 2020 में चीन की पहली बड़ी जंग का दावा

नई दिल्ली: चीनी अखबार वेनवेइपो ने चीन का एक War Calendar छापा है, जिसमें बताया बताया गया है कि चीन अगले 50 सालों में किन-किन देशों से जंग लड़ेगा. इस आर्टिकल में सिलसिलेवार ढंग से 6 जंग की भविष्यवाणी की गई है जिसमें साल 2020 का खास महत्व है क्योंकि इस अखबार के मुताबिक पहली वॉर इसी साल लड़ी जानी है. चीन के वॉर कलेंडर का आधार उन्नासवीं सदी के मध्य लड़ा गया अफीम युद्ध है. पहला युद्ध 1839-42 तक चला तो दूसरा 1956-60 के बीच. दोनों ही जंग में ब्रिटेन ने चीन को बुरी तरह हराया. इसके बाद अगले 100 सालों तक चीन रौंदा जाता रहा जिसे चीन के लोग अपमान के 100 वर्ष कहते हैं.

 

एक नई जानकारी सामने आने के बाद कुछ सवाल आज चीन के सामने खड़े हैं. चीन ने किसके खिलाफ 12 हजार मिसाइल तैनात कर रखी हैं? चीन किसे डराने के लिए लगातार सैन्य अभ्यास कर रहा है? इस साल किस देश की वायुसीमा में चीन 6 बार जबरदस्ती घुस गया? चीन पर नजर रखने वाले जानकारों को लगता है कि कोरोना महामारी के बीच चीन का पहला वार उसके एक पड़ोसी देश पर हो सकता है जो उससे आकार और ताकत में कहीं नहीं ठहरता, वो देश है ताइवान. तो ये ताइवान ही है जिसकी तरफ चीन ने अपनी 12 हजार मिसाइलों को तैनात कर रखा है.

 

फरवरी महीने में जिस वक्त चीन के वुहान में कोरोना वायरस जान ले रहा था. शी जिनपिंग की सेना ताइवान की वायुसीमा में घुसकर उसे डरा रही थी. चीन की इस हिमाकत के जवाब में ताइवान को अपने लड़ाकू विमान भेजने पड़े लेकिन चीन ने ताइवान को डराना जारी रखा और उसने जानबूझकर ताइवान के पास अपनी वायुसेना-नौसेना की मिलिट्री ड्रिल आयोजित की.21वीं सदी में चीन दुनिया की दूसरी बड़ी महाशक्ति बन चुका है और अब वो अपने अपमान का गिन गिन कर बदला लेना चाहता है. चीन का ये उतावलापन दुनिया को बहुत भारी पड़ सकता है क्योंकि चीन के वॉर कलेंडर में जिन 6 जंगों का जिक्र किया गया है.

 

उसकी शुरुआत साल 2020 से बताई गई है. चीन ने इस कैलेंडर के मुताबिक काम करना भी शुरू कर दिया है और उस देश की तरफ अपनी 12 हजार मिसाइलों का मुंह कर दिया है. सवाल है कि चीन सबसे पहले किस पर हमला करने वाला है. ब्रिटेन पर, जिसने उसे अफीम युद्ध में हराया. जापान पर, जिस पर वो अत्याचार का आरोप लगाता है. रूस पर, जिससे वो अपने इलाके वापस लेना चाहता है या फिर भारत पर जिससे उसका सीमा विवाद चल रहा है.

 

पिछले कुछ दिनों में चीन की सेना ने भारत में घुसपैठ की कोशिश की है, जिस तरह से लद्दाख में चीनी हेलिकॉप्टर देखे गए हैं. उससे सवाल उठता है कि क्या चीन 1962 जैसी कोई साजिश रच रहा है. चीन से आ रहे ऐसे ही संकेतों ने देश की सेनाओं को सतर्क कर दिया है. चीन सिर्फ भारत से नहीं उलझ रहा. वो दक्षिण चीन सागर में अमेरिका के दोस्तों को सता कर सुपरपावर को सीधे सीधे आंख दिखा रहा है. अमेरिका भी चीन को अपने यहां कोरोना फैलाने की जल्द से जल्द सजा देना चाहता है.

 

मार्च और अप्रैल के महीने में चीन के लड़ाकू विमान ताइवान को अपनी ताकत दिखाने का मौका ढूंढते रहे. जिसने जता दिया कि चीन के वॉर कलेंडर में ताइवान सबसे ऊपर है. चीन की इस उकसावे की कार्रवाई के जवाब में ताइवान ने भी अपनी ताकत का एहसास करवाने के लिए युद्धाभ्यास किया. ताइवान चीन की ताकत के आगे कहीं नहीं ठहरता. चीन के पास 22 लाख सैनिक हैं तो ताइवान के पास सिर्फ 2 लाख सैनिक हैं. चीन का रक्षा बजट 180 बिलियन डॉलर है तो ताइवान का 13 बिलियन डॉलर. लड़ाकू विमान हों, हेलिकॉप्टर हों या फिर पनडुब्बी चीन ताइवान से बहुत आगे है. चीन के पास जहां 2650 रॉकेट हैं तो ताइवान के पास सिर्फ 115.

 

चीन की सूची में पहला नाम ताइवान का क्यों है. क्यों ये छोटा से देश चीन के लिए बहुत बड़ी मुसीबत बन गया है. ये आपको बताएं उससे पहले आइए मिलकर समझते हैं कि इन दोनों देशों में दुश्मनी की वजह क्या है. ताइवान और चीन के बीच दुश्मनी की जड़ खुद को असली चीन बताने की होड़ है. मेनलैंड चाइना खुद को पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना कहता है तो ताइवान रिपब्लिक ऑफ चाइना है. ताइवान में 1949 से स्वतंत्र सरकार है जहां भारत की तरह लोकतंत्र है. दरअसल 1912 में चीन में राजवंश खात्म हो गया और वो ROC यानी रिपब्लिक ऑफ चाइना बन गया लेकिन 1945 में दूसरे विश्व युद्ध के बाद आज चीन पर शासन करने वाली कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना ने मौजूदा नेशनलिस्ट सरकार को हटा दिया.

 

जिसके नेता भागकर ताइवान चले आए. तभी से ताइवान चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की आंखों की किरकिरी बना हुआ है क्योंकि उसे डर है कि विकसित देशों में शामिल ताइवान की तरह चीन में भी लोकतंत्र की मांग हो सकती है जिससे कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना का बोरिया बिस्तर बंध सकता है.चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग कहते हैं कि हम ताइवान को चीन में मिलाने का भरपूर प्रयास करेंगे. शांतिपूर्ण कोशिश करेंगे. इसी में सबकी भलाई है. इसका मतलब ये नहीं है कि हम शक्ति का इस्तेमाल नहीं कर सकते. जरूरत पड़ने पर हमारी सेना तैयार है.

 

वहीं ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग विन का कहना है, ताइवान 'एक देश दो सिस्टम' की नीति को कभी नहीं मानेगा. ये ताइवान में रहने वाले सभी लोगों की राय है. इस पर सबकी सहमति है. हम बातचीत के लिए तैयार है. जैसे दो देशों की सरकारों में बात होती है. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना को ताइवान को हड़पने की एक और वजह मिल गई है. कोरोना वायरस ने चीन को जहां बेनकाब कर दिया है तो वहीं ताइवान की चौतरफा प्रशंसा हो रही है. चीन का पड़ोसी होकर भी ताइवान कोरोना को कंट्रोल करने का फॉर्मूला दुनिया को सिखा रहा है.

 

ताइवान में कोरोना के सिर्फ 440 केस और 7 मौत हुई हैं. इसके लिए ताइवान के उपराष्ट्रपति चेन चिएन-जेन को श्रेय दिया जा रहा है जो वायरस के एक्सपर्ट हैं और जिनका मानना है कि चीन कोरोना से मौत को लेकर झूठ बोल रहा है.
ताइवान के उपराष्ट्रपति, चेन चिएन-जेन कहते हैं कि वुहान में जब कोरोना फैला तो सिर्फ गंभीर लोगों का ही अस्पताल में इलाज किया गया, उन्हें अलग रखा गया. कोरोना कितने लोगों में फैला है इसकी जांच नहीं की गई. अगर आप चीन में कोरोना के गंभीर मामलों को देखें तो चीन ने मरने वालों का आंकड़ा छिपाया है.

 

ताइवान चीन को बेनकाब कर रहा है तो वहीं दुनिया भर के देशों को मास्क और मेडिकल उपकरण भेजकर उनकी मदद कर एक जिम्मेदार देश के तौर पर अपनी जगह बना रहा है. ये ताइवान ही था जिसने WHO का सदस्य न होते हुए भी दिसंबर 2019 में ही चीन के रहस्यम वायरस से आगाह कर दिया था. लेकिन चीन के दबाव में WHO खामोश रहा और देखते ही देखते पूरी दुनिया इसकी चपेट में आ गई. अमेरिका में जान-माल के नुकसान से नाराज डॉनल्ड ट्रंप चीन को ताइवान के जरिए झटका देना चाहते हैं इसके लिए उन्होंने WHO में ताइवान की एंट्री करवाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं.

 

अमेरिका की इस कार्रवाई से चीन बौखला गया है. जब ताइवान ने विश्व स्वास्थ्य सभा में शामिल होने के लिए भारत से मदद मांगी तो चीनी दूतावास ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए भारत को चीन की वन चाइना पॉलिसी की याद दिलाई. चीन की इसी दादागीरी के खिलाफ ताइवान में भी गुस्सा बढ़ता जा रहा है. ताजा सर्वे कहता है कि ताइवान के अधिकतर लोग स्वतंत्र देश चाहते हैं. चीन जानता था कि ताइवान उसमें शामिल नहीं होगा. इसीलिए 2060 तक चीन के 6 युद्धों के बारे में बताने वाले आर्टिकल में साल 2020 से ताइवान पर सैन्य कार्रवाई की शुरुआत करने का रास्ता सुझाया गया. इसमें ये भी बताया गया कि ताइवान के साथ जंग इस बात पर निर्भर करेगी कि अमेरिका और जापान उसका कितना साथ देते हैं.

 

चीन 2049 तक दुनिया की महाशक्ति बनना चाहता है. उसे लगता है कि ताइवान से जंग शुरू करके वो कितने पानी में ये भांप सकता है. लेकिन सवाल ये है कि बदले हालात में चीन इतना बड़ा जोखिम लेगा. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिगं की ये सबसे नई तस्वीर है. जिसमें वो तसल्ली से घूमते फिरते और लोगों से बात करते नजर आते हैं लेकिन दरियादिली का जो चेहरा चीन दुनिया को दिखा रहा है उसके पीछे का सच क्या सामने आने वाला है? चीन दुनिया को नई नई तस्वीर दिखा रहा है. जता रहा है कि कोरोना हार गया. जिंदगी पटरी पर है, लेकिन चीन की ऐसी रंगीन तस्वीरों के पीछे छिपा काला सच क्या अब बेपर्दा होने वाला है ?

 

कोरोना पर चीन से जुड़ी एक बड़ी खबर ने दुनिया में फिर हलचल मचा दी है. ये खबर चीन में कोरोना से संक्रमित मरीज और मौतों के आंकड़ों से जुड़ी है. मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि चीन की सेना के National University of Defense Technology ने कोरोना वायरस के मामलों पर एक डेटाबेस तैयार किया जो लीक हो गया है. इस डेटा को अमेरिकी अखबार फॉरेन पॉलिसी ने प्रकाशित किया है. दावा है कि डेटाबेस में कोरोना वायरस के मामलों और इससे हुई मौतों की पूरी जानकारी है. इस डेटाबेस के मुताबिक चीन में कोरोना संक्रमण के मामले उसके दावों के उलट लाखों में हो सकते हैं.

 

दावा ये भी कि कोरोना वायरस ने सिर्फ चीन के वुहान नहीं...बल्कि चीन के 230 शहरों को चपेट में लिया. यानि चीन ने कोरोना के आंकड़ों में भारी हेरफेर किया है जबकि चीन दावा करता रहा है कि उसके यहां नवंबर 2019 से अब तक कोरोना के 82,919 मामले ही आए जबकि 4,633 लोगों की मौत हुई. चीन के मुताबिक कोरोना उसके सिर्फ एक ही प्रांत हुबेई में ही फैला था लेकिन चीन के कोरोना पर इस झूठे आधिकारिक आंकड़ों का सच अब सामने आता दिख रहा है. अमेरिकी अखबार फॉरेन पॉलिसी की रिपोर्ट में दावा है कि कोरोना पर चीन ने सूचनाओं में 6,40,000 बार सुधार किया, दूसरे शब्दों में कहें तो 6,40,000 लाइनों में कुछ खास जगहों पर ही मामलों की संख्या दिखाने की कोशिश की गई है.

 

चीनी सेना का ये लीक डेटा फरवरी की शुरुआत से लेकर अप्रैल के अंत तक का है जिसमें संक्रमित मरीजों की कंफर्म संख्या के साथ उनके मिलने के स्थान की GPS कोडिंग दर्ज है. चीन की जिस National University of Defense Technology ने ये डेटा जुटाया. वो चीन के चांगशा शहर में स्थित है और इसकी कमान चीन का केंद्रीय सैन्य आयोग करता है. अमेरिका समेत कई देश चीन पर कोरोना संक्रमण के आंकड़े छिपाने के आरोप लगाते रहे हैं. विश्लेषक भी कहते आए हैं कि चीन में कोरोना वायरस से तबाही आधिकारिक आंकड़ों से बहुत ज्यादा हो सकती है लेकिन चीन आरोपों से इनकार करता आया है जबकि चीन की हरकतों से हर कोई वाकिफ है. आधिकारिक आंकड़ा को मामले में चीन काफी पहले से बदनाम है.

 

कोरोना पर चीन से जुड़ा ये नया खुलासा इसलिए भी अहम हो जाता है क्योंकि कोरोना वायरस से निपटने में चीन की सेना ने ही बड़ी भूमिका निभाई है. ऐसे में चीनी सेना की अगुवाई वाली यूनिवर्सिटी का लीक डेटाबेस हल्के में नहीं लिया जा सकता है.